गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व और कार्तिक पूर्णिमा का गंगा स्नान — श्रद्धा, सेवा और संस्कारों का संगम
November 6, 2025
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नई दिल्ली अरुण शर्मा रिधि दर्पण ! कार्तिक पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक आस्था, सामाजिक एकता और धार्मिक उत्साह का अनूठा संगम माना जाता है। इस
नई दिल्ली अरुण शर्मा रिधि दर्पण !
कार्तिक पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक आस्था, सामाजिक एकता और धार्मिक उत्साह का अनूठा संगम माना जाता है। इस दिन एक ओर जहाँ देशभर में गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर गंगा स्नान का पर्व सनातन धर्म के लिए पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक बनकर लाखों श्रद्धालुओं को एक सूत्र में जोड़ता है।
सनातन धर्म में गंगा स्नान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गंगा जी में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और आत्मा को पवित्रता की अनुभूति मिलती है। देश के विभिन्न तीर्थस्थलों — हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और गंगासागर में लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान कर धर्म लाभ प्राप्त करते हैं। इस दिन गंगा तटों पर दीपदान, भजन-कीर्तन और धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। सनातन परंपरा के अनुसार यह दिन दान और सेवा का भी प्रतीक माना गया है — जब समाज के लोग जरूरतमंदों की सहायता, भोजन वितरण और स्वच्छता अभियानों में भाग लेते हैं।
गुरु नानक देव जी — समानता और मानवता के दूत
इसी दिन सिख समाज गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव यानी गुरु पर्व बड़े ही श्रद्धा और उल्लास से मनाता है। सभी गुरुद्वारों को दीपमालाओं और रंगीन रोशनी से सजाया जाता है। सुबह-सुबह प्रभात फेरी में श्रद्धालु “सतनाम श्री वाहेगुरु” का कीर्तन करते हुए नगर भ्रमण करते हैं। लंगर सेवा और शबद कीर्तन के माध्यम से समाज में सेवा, समानता और भाईचारे का संदेश दिया जाता है।
गुरु नानक देव जी ने मानवता को यह सिखाया कि “न कोई हिंदू, न कोई मुसलमान — सब मनुष्य एक ही परमात्मा की संतान हैं।” यही कारण है कि यह पर्व न केवल सिख समाज का बल्कि समस्त मानवता का पर्व बन गया है।
दोनों पर्वों का एक साझा संदेश
गंगा स्नान और गुरु पर्व दोनों ही हमें आत्मशुद्धि, सेवा और एकता की प्रेरणा देते हैं। एक ओर गंगा स्नान हमें आध्यात्मिक पवित्रता की ओर ले जाता है, तो दूसरी ओर गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ सामाजिक पवित्रता और मानव समानता का मार्ग दिखाती हैं।
समाज की जिम्मेदारी है कि इन पवित्र अवसरों पर केवल उत्सव न मनाया जाए, बल्कि साफ-सफाई, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और मानव सेवा को भी जीवन का हिस्सा बनाया जाए — ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन परंपराओं के साथ जुड़कर गर्व महसूस कर सकें।
यह दिन दो महान धरोहरों का संगम है — गंगा की निर्मलता और गुरु नानक देव जी की करुणा। दोनों का संदेश एक ही है — सेवा ही सच्चा धर्म है, और प्रेम ही सच्ची पूजा।